इतिहास के पन्नों में कई हादसे, कई त्रासदियाँ दर्ज हैं लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पोलैंड में नाज़ियों के अधीन जो कुछ हुआ वैसी त्रासदी इतिहास ने शायद पहले कभी नहीं देखी थी.
इसके बारे में सुना था, पढ़ा था लेकिन पोलैंड में बनाए गए यातना शिविरों को रुबरू देखना मेरे लिए रोंगटे खड़े करने वाला अनुभव रहा जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है.
पोलैंड में बसा ऑस्त्विच शहर जर्मनों द्वारा बनाए यातना कैंपों में से सबसे बड़ा नेटवर्क है. 1939 में पोलैंड पर क़ब्ज़ा करने के बाद हिटलर ने 1940 में ऑस्त्विच के पास यातना शिविर बनवाया था.
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पोलैंड में नाज़ियों के बनाए यातना शिविरों में करीब 10 लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई जिसमें ज़्यादातर यहूदी थे.
कुछ साल पहले मैं जब पोलैंड गई थी तो इन शिविरों में जाने का मौका मिला. ऑस्त्विच के उन कैंप्स में जाना जिनका ज़िक्र फ़िल्मों में किया गया है, भावनात्मक तौर पर आपके अंदर तक उथल पुथल मचा देता है.
25 दिसंबर को पोलैंड में क्रिसमस मनाने के बाद अगले दिन सोचा कि पोलैंड को करीब से देखा- समझा जाए और पोलैंड के इतिहास को वहाँ बने यहूदी यातना शिविरों के बगैर समझना नामुमिकन सा है.
वहाँ के एक छोटे से शहर से कार के ज़रिए मैं अपनी मेज़बान के साथ सुबह पहुँची ऑस्त्विच कैंप.
जब ऑस्त्विच कैंप में लोहे के गेट से आप शिविर के अंदर आते हैं तो एक बोर्ड दिखाई देता है जिस पर लिखा है, ‘आपका काम आपको आज़ादी दिलवाता है.’
अंदर आने पर नज़र एक खास दरवाज़े पर गई. नाज़ी काल से जुड़ी हॉलीवुड की कई फ़िल्में बनी हैं जिनमें एक दृश्य अकसर रहता है जहाँ यहूदी लोगों से लदी रेलगाड़ियाँ एक दरवाज़े से होते हुईं शिविर के अंदर पहुँचती थीं.
इस दरवाज़े को ‘गेट ऑफ़ डेथ’ कहा जाता है.
शून्य से कई डिग्री कम तापमान में बर्फ़ से ढके इस दरवाज़े के पास जब मैं खड़ी थी तो एक अजीब सी सिहरन मेरे अंदर दौड़ गई.
यहाँ की वीरानगी और सन्नाटे के बीच खड़े होकर आप उस मंज़र की कल्पना भर ही कर सकते हैं