मांस-मदिरा मनुष्य का आहार नहीं । मनुष्य को सात्त्विक जीवन जीना चाहिए, आचार्य सरवन जी महाराज
संवाददाता रवि कुमार
मझिआंव।
नगर पंचायत क्षेत्र अंतर्गत वार्ड नंबर 04 ग्राम गहीड़ी में चल रहे श्रीमद्भागवत गीता दिव्य कथा वाचन में छठे दिन भगवान श्रीकृष्ण के जीवन प्रसंगों का सुंदर वर्णन किया गया। चित्रकूट से पधारे अंतर्राष्ट्रीय कथावाचक पूज्य श्री सरवन जी महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण विवाह प्रसंग, रुक्मणी हरण एवं गोपियों संग रासलीला का मनमोहक वर्णन किया।
महाराज श्री ने कथा के दौरान कहा कि “प्रकृति ही परमात्मा का स्वरूप है, इसलिए उसका संरक्षण हर मानव का कर्तव्य है।” उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि जन्मदिन या उत्सव मनाने के बजाय वृक्षारोपण कर प्रकृति को बचाएं और नदियों को प्रदूषण से मुक्त रखने का संकल्प लें।
उन्होंने कहा कि मांस-मदिरा मनुष्य का आहार नहीं है। मनुष्य को सात्त्विक जीवन जीना चाहिए, भजन-कीर्तन करना चाहिए और ईश्वर का नाम जपना चाहिए। पूज्य श्री ने बताया कि किसी भी जीव-जंतु को कष्ट नहीं देना चाहिए क्योंकि “यथा कर्म तथा फल” – जैसा कर्म करोगे, वैसा ही फल मिलेगा।
पाप को उजागर करना चाहिए और पुण्य को छिपाना चाहिए।
जिंदगी एक किराए का घर है, जिसे एक दिन छोड़कर जाना ही पड़ेगा।
अहंकार रखने वाला कभी भगवान का सच्चा भक्त नहीं हो सकता।उन्होंने कहा कि
रात्रि में नदी में स्नान वर्जित है।
बड़ी उपलब्धि भी व्यर्थ है यदि जीवन में राम और कृष्ण की भक्ति नहीं है।
पति-पत्नी का धर्म है कि दोनों एक-दूसरे का सहयोग करें और साथ निभाएं।
महाराज श्री ने कहा ।
अर्थात आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न अग्नि जला सकती है, न जल गीला कर सकता है और न वायु सुखा सकती है। यही आत्मा शाश्वत है और भगवान की भक्ति से ही उसे शांति प्राप्त होती है।
कथा वाचन के छठे दिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। वातावरण श्रीकृष्ण भक्ति से सराबोर रहा। भजन-कीर्तन और कथा के प्रवाह में उपस्थित जनमानस भावविभोर होकर धर्म व जीवन सुधार का संदेश ग्रहण करते रहे।